एक सांझ, एक सुबह थी तू,
एक पोटली भरी कहानी थी तू,
गावं की गलिओं की धुल,
और दो पहर की धुप थी तू,
बचपन की यादों को अपने साथ ले गयी है तू,
चौखट पे पोहंच के जब किसीसे पूछता हूँ,
कहाँ है तू,

भीगी हुई पलकों में दो बूँद आंसू बन के बह जाती है तू,
रातों की गलिओं में लोरिओं की गूँज बन के बहती थी तू,
हज़ारो ख्वाब देके नजाने कहाँ छुप गयी है तू,
दिल देहल जाता है ये सुनके,
के तू अब न आएगी,
अब किसके लिए माँ तेरी गाओं में जाएगी.